नई दिल्ली । हाड़ कंपाती ठंड भरी रात में दिल्ली की सड़कों पर बेबसी, लालच और नशे का सौदा आम है। स्थिति यह है कि अधिकतर बेघर अलाव जलाकर सड़क किनारे रात गुजारने या चांदनी चौक जैसे बाजारों के गलियारों में सोने को मजबूर हैं। क्योंकि, इनके लिए जो रैन बसेरे स्थापित किए गए हैं, उनमें कंबल, गद्दों के साथ समुचित बेड तथा आवश्यक वस्तुओं की कमी है। यहां तक की कई रैन बसेरों को चलाने वाला ही कोई नहीं है। खुद ही रैन बसेरों की साफ-सफाई कर उसमें रहने की व्यवस्था कर रहे हैं। जिनके पास वह व्यवस्था भी नहीं है, वह सड़क पर हैं। ऐसे में ठंड के कारण बेघरों के दम तोड़ने के मामले भी सामने आ रहे हैं। सेंटर फार होल्स्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया के अनुसार दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सर्दी के मौसम में 27 दिसंबर 2022 से पांच जनवरी 2023 तक 10 दिनों में दिल्ली की सड़कों पर कुल 68 बेघरों ने दम तोड़ा था, जिनमें से अधिसंख्य की मौत ठंड के कारण हुई थी। वहीं, इस वर्ष यह आंकड़ा बढ़कर 76 तक पहुंच गया है। पड़ताल में यह दृश्य पुरानी दिल्ली में आम मिला। सुभाष मार्ग पर दरियागंज के आगे चिड़िया बाजार के सामने देर रात पत्नी और अन्य बेघरों के साथ अलाव के सहारे रात गुजारते शाहरुख ने बताया कि मीना बाजार के नजदीक ही आश्रय गृह है, लेकिन उसमें सोने के इंतजाम नाकाफी है। वहां से क्षमता से अधिक लोग हैं। इसलिए वह सभी यहां सड़क पर आश्रय पाए हुए हैं। डिवाइडर पर प्लास्टिक डालकर सोने की व्यवस्था कर रखी है। इसी तरह लोथियन चौक रेलवे पुल, रिंग रोड के फ्लाईओवर के नीचे तथा निगम बोध घाट के आस पास भी बड़ी संख्या में खुले आसमान के नीचे बेघर मिले। निगम बोध घाट के नजदीक एक आश्रय गृह है। जिसमें कोई 100 बेघर सोए मिले। एक बेघर गौरव ने बताया कि पहले इस आश्रय गृह में 300 से अधिक बेघरों को जगह मिल जाती थी, लेकिन वर्षा के दिनों में आई बाढ़ ने गद्दे, कंबल खराब हो गए, जिसकी जगह पर नए गद्दे, कंबल समेत अन्य सामान नहीं लाए गए हैं। ऐसे में अधिक बेघरों को जगह नहीं मिल पाती है। जो आते हैं। उन्हें जमीन पर बिना बिस्तर सोने की मजबूरी है। इसलिए वह चले जाते हैं।